देबाक बंद्योपाध्याय
30 जून, रविवार, नयी दिल्ली, अमित शाह
ये वही स्थान काल व पात्र हैं, जिसकी तरफ बंगाल भाजपा नजर गड़ाये हुई है. इस दिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पश्चिम बंगाल के नेताओं के साथ बैठक करेंगे.
पश्चिम बंगाल भाजपा की वर्तमान स्थिति को लेकर रिपोर्ट देने के दौरान बंगाल के नेताओं को बांग्ला मिश्रित हिंदी में समझाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी. इसके बावजूद सबकुछ समझाने में सफल होंगे कि नहीं. इसको लेकर संदेह बरकरार है.
लोकसभा चुनाव में 18 सीट मिलने के बाद अब बंगाल में भाजपा का लक्ष्य राज्य सचिवालय नवान्न भवन है. हालांकि हमेशा चुनावी आंकड़े वास्तविकता नहीं होते. इस लक्ष्य को हासिल करने में कई बाधाएं हैं. जिस गाड़ी पर सवार होकर भाजपा नवान्न तक पहुंचना चाहती है, उसके चालक कई हैं और कई चालकों के जरिये गंतव्य तक पहुंचा नहीं जा सकता. यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए. इसके लिए सिर्फ एक चालक की ही नहीं, बल्कि जिम्मेदार चालक की जरूरत है, जो कठिन रास्तों से होकर गाड़ी को नवान्न भवन तक पहुंचा सके.
भूमिका बनाने से अच्छा एक बात स्पष्ट तौर पर कहना सही होगा कि दिवंगत तपन सिकदर के समय राज्य में भाजपा जिस ऊंचाई पर पहुंची थी, उसे संभाल के रखा नहीं जा सका. बाद में पार्टी का पतन ही हुआ. मोदी हवा के साथ दिलीप घोष राज्य में भाजपा के स्थिति को काफी हद तक सुधारने में कामयाब हुए थे, लेकिन यह काफी नहीं है. यह बात स्वयं दिलीप घोष भी भलीभांति समझते हैं.
यदि यह काफी होता तो भाजपा मुकुल राय को लेकर रुचि नहीं दिखाती. उनका भाजपा में जाना और भाजपा का उनको पार्टी में शामिल किया जाना इस बात को स्पष्ट करता है कि दिलीप घोष लक्ष्य प्राप्त करने के लिए काफी नहीं है. राज्य भाजपा में दिलीप घोष के नेतृत्व का समय अब पूरा हो चुका है. वह अपने कार्यकाल से अधिक समय से प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने हुए हैं. ऊपर से सांसद होने के बाद उनके पास समय का अभाव भी होगा. हालांकि वह अभी भी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर हैं. दूसरी तरफ मुकुल राय है. तृणमूल कांग्रेस के साथ उनकी लड़ाई राजनीतिक तो है ही, लेकिन राजनीतिक से अधिक यह लड़ाई उनकी व्यक्तिगत भी है. ऐसा कहना गलत नहीं होगा. उनकी राजनीतिक योग्यता और चुनावी कौशल राज्य के किसी भी भाजपा नेता से बेहतर है, बल्कि उनका राजनीतिक कौशल राष्ट्रीय स्तर के कुछ नेताओं के समतुल्य है, ऐसा भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षकों का मानना है. हालांकि हमेशा योग्यता ही आखिरी पैमाना नहीं होता. योग्यता भी एक तरह की अयोग्यता भी है. लोकसभा में राज्य में 18 सीट जीतने के पीछे जिनका दिमाग था जिनकी मेहनत थी वह थे मुकुल राय. यह बात मोदी-शाह जानते हैं, लेकिन वह यह जानते हैं कि नहीं कि यह 18 सीट बढ़ कर 25 हो सकती थी, यदि पार्टी में मुकुल राय के कुर्ते को पीछे से खींचा नहीं गया होता. इस बात की जानकारी भी पार्टी सुप्रीमो अमित शाह को होनी चाहिए.
पश्चिम बंगाल भाजपा में अभी दो विषय आमने-सामने है. एक राजनीतिक यथार्थबोध और दूसरा कुछ नेताओं का असुरक्षाबोध. तृणमूल छोड़ कर भाजपा में आनेवालों को लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा है. पार्टी की सुचिता और पवित्रता को लेकर हल्ला मचाया जा रहा है.
दूसरी तरह ममता राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर सहित कई नेताओं के साथ विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनाने में जुट गयी हैं. हालांकि कट मनी का मुद्दा उठा कर ममता खुद फंस गयी हैं. वहीं राज्य के बुद्धिजीवी भी सक्रिय हो गये हैं. ऐसे में भाजपा के लिए राह आसान नहीं. कौन जानता है कि ममता और पशांत किशोर कौन सी चाल चल दें, जो भाजपा के पक्ष में बने माहौल को कहीं बदल न दें.
ऐसे में अमित शाह को समय रहते नवान्न की ओर जा रही गाड़ी के लिए कोई एक चालक निर्धारित कर देना चाहिए. जो दक्ष हो. काबिल हो. रास्ता जानता हो.
पार्टी के नाराज नेताओं और लोगों को मन को जीतने की कला ममता अच्छी तरह जानती हैं. रविवार की बैठक में अमित शाह इस बात को दिमाग में रखें तो ही भला है.
