चैनल हिंदुस्तान डेस्क: चीन ने एक बार फिर से जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक आतंकी घोषित होने से बचा लिया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रेजॉल्यूशन 1267 के तहत मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव लाया गया था लेकिन चीन के वीटो की वजह से यह पास नहीं हो सका। पिछले 10 सालों में चीन 4 बार ऐसा कर चुका है।
भारत ने 2016 में पठानकोट हमले के बाद मसूद अजहर को बैन करने की कोशिश की थी लेकिन चीन ने तकनीकी आधार का हवाला देकर इसे लटकाए रखा। इस बार भी चीन ने वही किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव पर चीन ने चौथी बार अपने वीटो पावर का इस्तेमाल किया है।
इसमें कोई शक नहीं है कि चीन के लिए पाकिस्तान ही प्राथमिकता पर है और उसका सदाबहार दोस्त भी। मसूद अजहर पाकिस्तान से आतंकी संगठन की गतिविधियों को अंजाम देता है। अगर अजहर वैश्विक आतंकी घोषित हो जाता तो पाकिस्तान को उसकी सारी संपत्ति जब्त करनी पड़ती और उसकी आवाजाही पर बैन लगाना पड़ता। चीन पाकिस्तान को खुश करने की हर कोशिश करता रहता है लेकिन इसके अलावा मसूद अजहर को बैन ना करने के पीछे चीन का एक अलग डर भी है।
दरअसल, चीन दक्षिण एशिया में अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान का बचाव करने से ज्यादा अपने आर्थिक हितों को साधने में लगा हुआ है। चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) चीन की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट ऐंड रोड (BRI) का अहम हिस्सा है। BRI के तहत चीन सड़क, रेल और समुद्रीय मार्ग से एशिया, यूरोप और अफ्रीका में अपनी पहुंच बनाएगा।
चीन को डर है कि जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ किसी भी फैसले से उसका बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) प्रभावित हो सकता है। चीन का CPEC प्रोजेक्ट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है जो जैश-ए-मोहम्मद का निशाना बन सकता है।
सीपीईसी ना केवल पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) और गिलिगिट-बालटिस्तान से होकर गुजरता है बल्कि खैबर पख्तूनख्वा के मनसेरा जिले में भी फैला है। खैबर पख्तूनख्वा में ही बालाकोट स्थित है जहां पर कई आतंकी कैंप स्थित हैं। भारतीय वायु सेना ने पुलवामा हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद के एक बड़े कैंप को तबाह कर दिया था।
चीन ने हाल ही में बालाकोट के नजदीक सीपीईसी के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण किया था। इसके अलावा, पाकिस्तान को चीन से जोड़ने वाला कराकोरम हाईवे भी मनसेरा से ही होकर गुजरता है।
चीन के उप-विदेश मंत्री कॉन्ग शुआन्यू ने 5 से 6 मार्च तक पाकिस्तान के दौरे पर थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कॉन्ग ने इस दौरे में सीपीईसी की सुरक्षा को लेकर बातचीत की। सीपीईसी से जुड़ी परियोजनाओं में करीब 10,000 चीनी नागरिक काम कर रहे हैं जिनकी सुरक्षा भी दांव पर लगी हुई है।
भारत ने हमेशा से यह महसूस किया है कि पाकिस्तानी सेना का इन आतंकी समूहों पर नियंत्रण चीनी हितों की सुरक्षा करने में मदद करता रहा है। हालांकि, बलूचिस्तान और सिंध प्रांत में चीनी नागरिकों और मजदूरों के खिलाफ आतंकी हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं जो चीन के लिए चिंता का सबब बन गया है।
चीन ने सीपीईसी के करीब 45 परियोजनाओं में करीब 40 अरब डॉलर का निवेश किया है जिसमें से आधे प्रोजेक्ट पूरे होने को हैं। चीन किसी भी सूरत में अपने भारी-भरकम आर्थिक और समय के निवेश की सुरक्षा चाहता है।
पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्तों की वजह से जैश जैसे आतंकी संगठनों से सीपीईसी परियोजना और उसमें काम कर रहे हजारों चीनी नागरिकों को सुरक्षा मिल जाती है।
चीन की यह परियोजना बलूच अलगाववादियों के साथ-साथ पाकिस्तानी तालिबान के निशाने पर भी है जो चीन के शिनजियांग प्रांत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का विरोध करने का दावा कर रहे हैं। 2015 में पाकिस्तान ने सीपीईसी परियोजना की सुरक्षा में 20,000 जवानों की तैनाती की थी।
जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ली थी जिसके बाद भारत को उम्मीद थी कि इस बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसे वैश्विक आतंकी घोषित किया जा सकेगा। चीन का यह कदम भारत के लिए एक बड़ा झटका है।